संत सूरदास का जीवन परिचय – (surdas ka jeevan parichay)

सूरदास का जीवन परिचय (surdas ka jeevan parichay): सूरदास एक महान कवि के तौर पर जाने जाते हैं। इन्होंने कई सारे महाकाव्यों और दोहों की रचना की है। महाकाव्य और दोहों के अलावा सूरदास ने कई सारे भक्ति गीत भी लिख रखें हैं। सूरदास द्वारा लिखी गई रचनाओं को आज भी लोगों द्वारा पढ़ा जाता है। सूरदास भगवान कृष्ण जी के बहुत बड़े भक्त हुआ करते थे और इन्होंने कृष्ण जी के कई सारे भक्ती गीत भी लिख रखे हैं। आज हम आपको सूरदास का जीवन परिचय देने जा रहे हैं। तो आइए जानते हैं कि आखिर कौन थे महाकवि सूरदास।

संत सूरदास का जीवन परिचय – (surdas ka jeevan parichay)

पूरा नाम – सूरदास

जन्म तारीख (अनिश्चित) – 1478–1483 ( के दौरान )

जन्म स्थान – रुनकता (उत्तर प्रदेश)

मृत्यु की तारीख (अनिश्चित) – 1561-1584 (के दौरान)

पिता का नाम- रामदास सारस्वत

माता का नाम – जमुनादास सारस्वत

पेशा – संत, कवी और संगीतकार

प्रसिद्ध रचनाएं – सूरसागर, सूरसारावली, साहित्य-लहरी, नल-दमयन्ती, ब्याहलो

सूरदास का जन्म और परिवार

सूरदास का जन्म रुनकता नामक गांव में हुआ था जो कि मथुर के पास स्थित है। हालांकि कुछ विद्वानों का ये कहना है कि इनका जन्म सीही नामक स्‍थान पर हुआ था। वहीं इनकी सही जन्म तारीख को लेकर भी कई तरह के मतभेद हैं। इतिहासकारों के अनुसार इनका जन्म 1478–1483 ई. के दौरान हुआ था।

जन्म से ही सूरदास अंधे थे। सूरदास का नाता ब्राह्मण परिवार से थे और इनके पिता रामदास एक गायक हुआ करते थे। इनकी मां का नाम जमुनादास था। कहा जाता है कि अंधे होने के कारण सूरदास को उनके पिता ने घर से निकाल दिया था और महज 6 साल की आयु में सूरदास बिलकुल अकेले हो गए थे।

सूरदास के गुरु

सूरदास का जीवन परिचय के मुताबिक घर से निकाले जाने के बाद सूरदास आश्रम में रहने लगे थे। इसी दौरान एक दिन सूरदास की मुलाकात श्री वल्‍लभाचार्य से हुई। सूरदास श्री वल्‍लभाचार्य से काफी प्रभावित हुए और सूरदास ने श्री वल्‍लभाचार्य को अपना गुरु बना लिया। श्री वल्‍लभाचार्य के शिष्य बनने के बाद सूरदास पूरी तरह से कृष्‍ण जी की भक्ती में मगन हो गए थे और केवल कृष्ण जी का नाम ही जपा करते थे।

सूरदास का जीवन परिचय और कृष्ण जी से जुड़ी कथा

एक बार सूरदास कृष्ण जी की भक्ति में इतने खो गए की चलते हुए वो एक कुए में जा गिरे। अपने भक्त को परेशानी में देख कृष्ण जी से रहा नहीं गया और उन्होंने सूरदास को दर्शन दिए और उन्हें कुए से बाहर निकाला। सूरदास अंधे थे इसलिए कृष्ण जी ने उनको आंखो की रोशनी भी दे दी। आंखे सही होने के बाद सूरदास ने सबसे पहले कृष्ण जी को देखा और कृष्ण जी को देखने के बाद सूरदास ने उनसे विनती की कि वो वापस से उनके नेत्रों की रोशनी ले लें। विनती करते हुए सूरदास ने कहा कि आपको देखकर मेरा जीवन धन्य हो गया है और अब मैं कुछ और नहीं देखना चाहता हूं। सूरदास की इस विनती को कृष्ण जी ने स्वीकार कर लिया और उनकी नेत्रों की रोशनी वापस ले ली।

सूरदास का हिंदी साहित्य में योग दान

सूरदास ने अपने जीवन काल में कुल सवा लाख पदों की रचना की थी। इन्होंने लगभग एक लाख गीत लिखे थे। जिनमें केवल कृष्ण के बचपन और उनकी लीला का ही जिक्र है। कृष्ण जी के गीतों के अलावा सूरदास ने सूरसागर, सुर-सारावली और सहित्य-लहरी की भी रचना की है। इनके द्वारा लिखे गए कृष्ण गीत और दोहे काफी प्रसिद्ध हैं। इनके द्वारा लिखे गए दोहों में भी केवल कृष्ण जी का वर्णन मिलता है। आज भी स्कूलों में बच्चों को सूरदास के दोहे पढ़ाए जाते हैं। सूरदास द्वारा दोहे संस्कृति भाषा में लिखे गए हैं और इनके कुछ प्रसिद्ध दोहे इस प्रकार से हैं।

दोहा – 1

“चरन कमल बंदौ हरि राई

जाकी कृपा पंगु गिरि लंघै आंधर कों सब कछु दरसाई॥

बहिरो सुनै मूक पुनि बोलै रंक चले सिर छत्र धराई

सूरदास स्वामी करुनामय बार-बार बंदौं तेहि पाई ॥

दोहे का अर्थ-  इस दोहे में सूरदान ने श्री कृष्ण का वर्णन करते हुए कहा कि इनकी लीला ऐसी है कि लंगड़ा व्यक्ति भी पर्वत को पार कर लेता है, अंधे लोगों को दिखने लग जाता है। बहरे व्यक्ति को सुनाई देने लगता है जबकि गूंगा व्यक्ति बोलने लग जाता है। गरीब व्यक्ति धनवान बन जाता है। मैं अपने प्रभु के चरणों को बार-बार नमन करता हूं।

दोहा- 2

अबिगत गति कछु कहति न आवै।

ज्यों गूंगो मीठे फल की रस अन्तर्गत ही भावै॥

परम स्वादु सबहीं जु निरन्तर अमित तोष उपजावै।

मन बानी कों अगम अगोचर सो जाने जो पावै॥

रूप रैख गुन जाति जुगति बिनु निरालंब मन चकृत धावै।

सब बिधि अगम बिचारहिं तातों सूर सगुन लीला पद गावै॥२॥

दोहे का अर्थ: इस दोहे में सूरदास कहते हैं कि कुछ ऐसी चीजे होती हैं जिन्हें केवल मन ही समझ सकता है। एक गूंगा व्यक्ति मिठाई तो खा सकता है मगर मिठाई का वर्णन नहीं कर सकता है। लेकिन उसके मन उस भाव को समझ सकता है। इसी तरह से ब्रह्म ईश्वर का ना कोई रूप होता है, ना गुण। श्री कृष्ण की लीलाओं का वर्णन करते हुए मुझे  जो आनंद मिलता है वो केवल मेरा मन ही समझ सकता है। उस आनन्द का वर्णन नहीं किया जा सकता है।

दोहा – 3

बूझत स्याम कौन तू गोरी।

कहां रहति काकी है बेटी देखी नहीं कहूं ब्रज खोरी॥

काहे कों हम ब्रजतन आवतिं खेलति रहहिं आपनी पौरी।

सुनत रहति स्त्रवननि नंद ढोटा करत फिरत माखन दधि चोरी॥

तुम्हरो कहा चोरि हम लैहैं खेलन चलौ संग मिलि जोरी।

सूरदास प्रभु रसिक सिरोमनि बातनि भुरइ राधिका भोरी॥

इस दोहे का अर्थ- इस दोहे में सूरदास कहते हैं कि श्री कृष्ण एक सखी से पूछते हैं कि तुम कौन हो, कहां रहती हो, तुम्हारी मां कौन है,  तुम्हें ब्रज में कभी नहीं देखा है। तुम्हारी बेटी ब्रज में आकर हमारे साथ क्यों नहीं खेलती है?  हमें खेलने के लिए एक और सखी मिल गई है। श्री कृष्ण श्रृंगार रस के ज्ञाता हैं। वह कृष्ण और राधा की बातों को सुंदर तरह से बताते हैं।

सूरदास का निधन (surdas ka jeevan parichay)

सूरदास का निधन कब हुआ था इसके बारे में पुख्ता जानकारी नहीं हैं। लेकिन ऐसा कहा जाता है कि इनका निधन 1561-1584 ईं. के दौरान हुआ था। सूरदास ने अपने जीवन के आखिरी साल कृष्ण जी की भूमी यानी ब्रज में बिताया थे और कृष्ण जी की भक्ति में मगन रहे थे। सूरदास की रचना आज भी प्रसिद्ध हैं और ये एक महान कवि में गिने जाते हैं। सूरदास का जीवन परिचय (surdas ka jeevan parichay) पढ़कर आपको भी इस बात का एहसास हो गया होगा की क्यों इन्हें महाकवि कहा जाता है।

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